Shab-e-firaq

शब-ए-फ़िराक़ बेशक लंबी होती है,

ख़ैरियत है कि ख़ैर ये भी गुज़र जाती है,

कि कुछ यूँ देखा है मैंने परिंदों को दर्द से उभरते,

हस्ती भले बिखरे, मगर शख़्सियत निखर जाती है..

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