जुर्म करने की उम्र नहीं थी उसकी..
जुर्म करने की उम्र नहीं थी उसकी,
पर उसे समलैंगिक होने का सज़ा फ़रमाया गया..
उसके खुशियों की किसी को नहीं पड़ी,
पर हर खुशी के मौके पर उसके दुआओं को आजमाया गया..
उसकी तारीफ़ किसी ने नहीं की,
पर उसकी कमियों को हमेशा बढ़ चढ़ कर नुमाया गया..
हमेशा लोग चिड़ते रहे उससे,
उसकी हर ख़्वाहिश को समाज द्वारा दबाया गया..
जो भगवान ने बनाया था,
उस इंसान का हर मुक़ाम पर मज़ाक उड़ाया गया..
उसके अकेले रहने का कानून बना दिया समाज ने,
उसके प्यार को हमेशा अस्वीकृत बताया गया..
ये जो दुआओं की एक ताकत बख्शी है खुदा ने,
उसे हमेशा से एक अभिशाप बताया गया..
बर्दाश्त की हद तो तब पार हुई जब अपने परिवार ने भी ठुकराया उसे,
जीते जी उसके जीने के हक़ को दफ़नाया गया..
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