नदी की धार

नदी की धार में बह कर 
चला जाऊँगा सागर में 
जो सागर भी ना अपनाये 
चला जाऊँगा बादल में 
मैं वो पानी का मोती हूँ 
जो पर्बत से बिछड़ बैठा
किसी की प्यास को भरने 
चला जाऊँगा गागर में 

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