कमबख़्त लगता है अब ये भी समझदार हो गए हैं..
क़िताबों में पड़े वो सूखे गुलाब के फूल
वो धूल लगे हुए पुराने ख़त
हमारी पहली तस्वीर
और तुझसे बिछड़ी मेरी वो रूह,
कई मर्तबा पूछते हैं तेरे बारे में
"किसी दिन फिर मुलाकात होगी तुझसे"
यही बोल के फुसला दिया करता हूँ..,
पर अब लगता है ये और नहीं बहलने वाले
न जाने कबसे ये तेरे इतने तलबगार हो गए हैं
कमबख़्त लगता है अब ये भी समझदार हो गए हैं..
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