तुम भी न..क्या ख़ूब काम करती हो,
इशारे खुद करती हो और हमारी नज़रों को बदनाम करती हो!
सियासत की भी हद होती है,
क्यूँ हम्हीं का क़त्ल करके, हम्हीं पर इल्ज़ाम करती हो?

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